Monday, December 3, 2012

THROWING MUD ON 'EARLY INDIAN SOCIETY'

Generally the text books of a nation are used to instill a feeling of love, affection and pride for the nation and its heritage. Our country is an exception since 1947, the event which is naively called freedom.

The trend of NCERT text books has been deliberately filled with lies and half lies which will make even Goebbles feel amateurish. One such topic is on the page no. 60 of the history book for class 12.

The aim of this page is to give an idea that the early (read Vedic/Arya/Sanatan/Hindu) भारत  was a society which did not respect mothers. To prove this point, they have used the example of Duryodhan who defies the command of his mother and goes to battle with Pandavs. To give finishing touches to this trick, a question is asked immediately - 'Does this passage give you an idea about the way in which mothers were viewed in early Indian societies?'.

If you find it laughable, then you are right at one level.

But the trick is really sinister in its design when you think of the impact it can have on young and impressionable minds. That is what NCERT wants to do to our society.

I have mentioned six shloks from the same epic which might have missed the jaundiced eyes of the 'eminent historians' sitting in Delhi.


आदि पर्व के आस्तीकपर्व का श्लोक 17 (पृष्ठ 188, महाभारत, खण्ड 1, गीता प्रेस गोरखपुर)

एवमुक्तस्तथेत्युक्त्वा  सास्तीको मातरं तदा ।

हिंदी - माँ ! तुम्हारी जैसी आज्ञा है वैसा ही करूँगा।


आदि पर्व के संभवपर्व का श्लोक 28 (पृष्ठ 378, महाभारत, खण्ड 1, गीता प्रेस गोरखपुर)

भवत्या यदभिप्रेतम तदहं कर्तुमागत:।
शाधि मां धर्मतत्त्वज्ञे करवाणि प्रियं तव ।।

हिंदी - धर्म के तत्त्व को जानने वाली माँ ! आपकी जो हार्दिक इच्छा हो, उसके अनुसार कार्य करने के लिए मैं यहाँ आया हूँ । आज्ञा दीजिये मैं आपकी कौन सी प्रिय सेवा करूँ ।

आदि पर्व के संभवपर्व का श्लोक 31 (पृष्ठ 378, महाभारत, खण्ड 1, गीता प्रेस गोरखपुर)

मातापित्रो: प्रजायन्ते पुत्रा: साधारणा: कवे।
तेषां पिता यथा स्वामी तथा माता न संशय: ।।

हिंदी - माता और पिता, दोनों से पुत्रों का जन्म होता है, अत: उनपर दोनों का समान अधिकार है। जिस प्रकार पिता पुत्रों का स्वामी है, उसी प्रकार माता भी है।

आदि पर्व के संभवपर्व का श्लोक 16 (पृष्ठ 649, महाभारत, खण्ड 1, गीता प्रेस गोरखपुर)

गुरोर्हि वचनं प्राहुर्धमर्यं धर्मज्ञसत्तम ।
गुरुणां चैव सर्वेषां माता परमको गुरु:।।

हिंदी - धर्मज्ञों में सर्वश्रेष्ठ व्यास जी! गुरुजनों की आज्ञा को धर्मसंगत बताया गया है और समस्त गुरुओं में माता परम गुरु मानी गयी है।

वन पर्व के मार्कंडेयसमास्या पर्व का श्लोक 3 - 4 (पृष्ठ 674, महाभारत, खण्ड 2, गीता प्रेस गोरखपुर)

प्रत्यक्षमिह विप्रर्षे देवा दृश्यन्ति  सत्तम ।
सुर्याचंद्र्मा सौ वायु: पृथ्वी वह्निरेव च।।
पिता माता च भगवन गुरुरेव च सत्तम।
यच्चान्यद देवविहितम तच्चापि भृगुनंदन ।।

हिंदी - भगवन! श्रेष्ठ ब्रह्मर्षे! इस जगत में सूर्य, चंद्रमा, वायु, पृथिवी, अग्नि, पिता, माता और गुरु - ये सात प्रत्यक्ष देवता हैं। इनके अतिरिक्त जो देवता रूप से स्थापित हैं, वे भी प्रत्यक्ष देवताओं की कोटि में हैं।

इसी पर्व का श्लोक 17 इस प्रकार है:
मात्रिस्तु गौरावादन्ये पित्रिनान्ये तू मेनिरे।
दुष्करं कुरुते माता विवर्धयति या प्रजा:।।

हिंदी - कुछ लोग माताओं को गौरव की दृष्टि से बड़ी मानते हैं तो अन्य पिता को महत्त्व देते हैं। परन्तु माता जो अपनी संतानों को पाल पोसकर बड़ा बनाती है, वह उसका एक दुष्कर कार्य है।


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